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अजमेर दिल्ली सहित सभी दरगाहों पर याद किये गए आज़ादी के परवाने

नई दिल्ली :14 अगस्त दरगाह हज़रत निज़ामुद्दीन स्थित ग़ालिब अकादमी में आल इंडिया उलमा मशाइख़ बोर्ड द्वारा पूर्व घोषित कार्यक्रम “एक शाम आज़ादी के परवानो के न

नई दिल्ली :14 अगस्त दरगाह हज़रत निज़ामुद्दीन स्थित ग़ालिब अकादमी में आल इंडिया उलमा मशाइख़ बोर्ड द्वारा पूर्व घोषित कार्यक्रम “एक शाम आज़ादी के परवानो के नाम” संपन्न हुआ. सिर्फ दिल्ली ही नहीं दरगाह अजमेर सहित पूरे देश में स्थित लगभग सभी दरगाहों पर यह कार्यक्रम संपन्न हुआ. इस अवसर पर आल इंडिया उलमा मशाइख़ बोर्ड के दिल्ली शाखा के उपाध्यक्ष और दरगाह हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया रह्मतुल्लाह अलैहि के सज्जादा नशीन हज़रत फरीद अहमद निज़ामी ने कहा कि मुल्क को आज़ादी तोहफे में नहीं मिली है, इसको बड़ी कुर्बानियों के बाद हासिल किया गया है और इस देश को आज़ाद कराने वालों को याद करना हमारा फ़र्ज़ है जिनकी मेहनतों की वजह से हम आज आज़ाद हिन्दोस्तान में साँस ले पा रहे हैं, उन्होंने कहा कि न जाने कितने ऐसे नाम हैं जिनका कहीं ज़िक्र भी नहीं होता, आज उन्हें भुला दिया गया है, आज के दिन आल इंडिया उलमा मशाइख़ बोर्ड ने जो कार्यक्रम रखा है इसका मक़सद यही है कि हम उन्हें याद करें और अपने अन्दर वही जज्बा जगाएं कि अगर वतन पर बात आएगी तो पहला सर हमारा होगा, हालाँकि हम कभी कुर्बानियां देने से पीछे नहीं हटे हैं.
कार्यक्रम में बोलते हुए वर्ल्ड सूफी फोरम के प्रवक्ता और इस्लामिक स्कालर गुलाम रसूल देहलवी ने कहा कि जब हमारा देश गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था उस वक़्त अल्लामा फज़ले हक़ खैराबादी ने अंग्रेजों के खिलाफ जेहाद का फतवा दिया और एलान कर दिया कि हम अंग्रेजों को बर्दाश्त नहीं करेंगे. उसके बाद सभी जानते हैं इसी दिल्ली की सरज़मीन पर लगभग 20000 उलमा को फाँसी के फंदे पर लटका दिया गया लेकिन वतन को आज़ाद कराने की जो अलख जगी थी उसे लाशों का हुजूम भी ठंडा नहीं कर सका और 15 अगस्त 1947 की वह सुहानी सुबह भी आई कि देश को अंग्रेजों की गुलामी से आज़ादी मिल गयी.
आल इंडिया उलमा मशाइख़ बोर्ड के ज़िम्मेदार मुख्तार अशरफ ने कहा कि मदरसों में पढने वाले लोग सबसे पहले आज़ादी की लडाई में कूद गए. आज हालात कुछ बदले बदले हैं लेकिन आज भी जज्बा वही है अगर हमारे देश की तरफ कोई निगाह उठा कर देखेगा तो हम वह आँख निकाल लेंगे. उल्मा ए अहले सुन्नत की क़ुर्बानियां बेशुमार हैं लेकिन साज़िशन उनके नाम छुपा दिए गये. हम आज यहाँ उन्हें खिराजे अकीदत पेश करने इकट्ठे हुए हैं जो अपना सब कुछ लुटा गए देश के लिए.
यूनुस मोहानी ने कहा कि टीपू सुलतान से शुरू हुई आज़ादी की मुहिम बहादुर शाह ज़फर से होते हुए अल्लामा फज़ले हक खैराबादी, मौलाना शौकत अली जौहर, मौलाना मोहम्मद अली जौहर और मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महली और अनगिनत नाम जिन्हें हम नहीं जानते. आज हम उन्हें श्रधांजलि देने उपस्थित हुए हैं. इस अवसर पर मौलाना हसरत मोहानी का ज़िक्र भी ज़रूरी है क्योंकि यह वह नाम है जिसने मुल्क की सबसे पहले मुकम्मल आज़ादी की मांग की. यही वह नाम है जिसने आज भी नसों में जोश भर देने वाला नारा इंक़लाब जिंदाबाद दिया और यह हमारी जमात से हैं लेकिन अफ़सोस इन्हें भुला दिया गया. आल इंडिया उलमा मशाइख़ बोर्ड का यह प्रयास उन सब जांबाजों को याद करना है जिनकी वजह हमें आज़ादी का परवाना मिला.
इनके आलावा मिन्हाजुल क़ुरआन दिल्ली के सदर सय्यद अहमद अली मुजद्दीदी साहेब, हज़रत शाह तुर्कमान बयाबानी र.अ के सज्जादा नशीन हज़रत सय्यद आज़म अली निजामी साहेब,माहनामा कंज़ुल इमान के मुदीर मौलाना जफरुद्दीन बरकती साहेब,आल इंडिया उलमा व मशाख़ बोर्ड दिल्ली के संयुक्त सचिव सय्यद शादाब हुसैन रिज़वी साहेब ने उम्दा ख़िताब किये.
कार्यकम में शैख़ अब्दुल हक़ महोद्दिस देहलवी के सज्जादा नशीन फरहान हक्की साहेब,जनाब फज़ल साहेब, जनाब अकरम क़ादरी साहेब, सलीम चिश्ती साहेब, रईस अहमद अशरफी साहेब, ज़फर अशरफ़ी साहेब ,निज़ाम अशरफी, अरमान अशरफी क़मर अंसारी, सफ़दर फारूकी, हसीबुर रहमान, अलीशा सिद्दीक़ी,अब्दुल अलीम अब्बासी, व गुलामाने कादरिया सामरिया के प्रतिनिधियों के आलावा बड़ी तादाद में लोगों ने शिरकत की.
कार्यक्रम के अंत में फातिहा ख्वानी हुई और सलात व सलाम के बाद मुल्क में अमन और तरक्की की दुआ की गयी और कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ.
By: यूनुस मोहानी

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