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इस्लाम एक मुकम्मल निज़ाम-ए-हयात ,क़यामत तक के लिए हैं उसूल-ए- क़ुरआन: सय्यद मोहम्मद अशरफ

29 सितम्बर, देवास आल इंडिया उलमा व मशाइख बोर्ड के अध्यक्ष एवं वर्ल्ड सूफी फोरम के चेयरमैन हज़रत सय्यद मोहम्मद अशरफ किछौछवी ने मध्य प्रदेश के देवास में

29 सितम्बर, देवास

आल इंडिया उलमा व मशाइख बोर्ड के अध्यक्ष एवं वर्ल्ड सूफी फोरम के चेयरमैन हज़रत सय्यद मोहम्मद अशरफ किछौछवी ने मध्य प्रदेश के देवास में एक जलसे को संबोधित करते हुए कहा कि “इस्लाम एक मुकम्मल निज़ाम-ए- हयात है,क़यामत तक के लिए हैं उसूले क़ुरआन” उन्होंने यह बात सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया के द्वारा भारतीय दंड सहिंता की धारा 497 को समाप्त किये जाने के सम्बन्ध में कही.

उन्होंने कहा कि इस क़ानून के रहने या न रहने का मुसलमानों पर कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि क़ुरआन में ज़िना हराम है और ता क़यामत हराम ही रहेगा इसमें कोई बदलाव नहीं किया जा सकता, लिहाज़ा इस क़ानून के होने या न होने से क़ुरआन पर ईमान रखने वालों पर कोई फर्क नहीं पड़ता, उन्हें हर उस काम से दूर रहना है जिसे अल्लाह और उसके रसूल ने हराम क़रार दिया.

हज़रत किछौछ्वी ने यह भी कहा कि इस्लाम एक मुकम्मल निज़ाम-ए- हयात है, इसमें हर चीज़ का बहुत विस्तृत वर्णन किया गया है और हर बुरे काम के लिए दंड पहले से ही तय है. लेकिन हम जहाँ रहते हैं उस देश के हर उस क़ानून को मानना हमारी ज़िम्मेदारी है जिससे हमारे दीन में फर्क न पड़ता हो.

हज़रत ने कहा कि भारत की अपनी एक संस्कृति है उस पर इस तरह के क़ानूनों के ख़त्म होने का अच्छा असर नहीं पड़ेगा क्योंकि समाज में अगर क़ानून का खौफ़ खतम होगा तो लोग गुनाह की तरफ आसानी से आकर्षित होंगे, सरकार और अदालत को इस ओर भी गौर करना चाहिए .

मुसलमान क़ुरआन पर ईमान रखने वाले और अमल करने वाले हैं तो उन्हें बखूबी समझ लेना चाहिए कि दुनिया के बनाये क़ानून वक़्त के साथ बदलते हैं लेकिन अल्लाह का क़ानून नहीं बदल सकता, लिहाज़ा बुरी बातों से दूर रहिये और नेक अमल रखिये इसी मे हमारी और आपकी निजात है.

By: यूनुस मोहानी

 

 

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