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सीमांचल की त्रासदी पर समाज, राजनीति एवं धर्म की ख़ामोशी :अब्दुल मोईद अज़हरी

सीमांचल में आई त्रासदी के चलते, हुई भीषण तबाही ने एक क़यामत का माहौल बना दिया है। UP, बिहार और असम के लगभग पचास जिले और उस में रहने वाले लाखों इन्सान अ

सीमांचल में आई त्रासदी के चलते, हुई भीषण तबाही ने एक क़यामत का माहौल बना दिया है। UP, बिहार और असम के लगभग पचास जिले और उस में रहने वाले लाखों इन्सान अपनी मौत का इंतज़ार कर रहे हैं। अब तक दो सौ से ज़्यादा मौतें हो चुकी हैं। सैकड़ों ला पता हैं। हजारों बे घर हैं। कई रास्ते एवं सड़के ख़त्म हो चुकी हैं जिसके कारण उन तक पहुंचना असंभव हो गया है। ईश्वर के सहारे सहायता कि आस और उम्मीद में दिन काट रहें हैं। कई ऐसे भी हैं जिन के सामने उन का पूरा कुन्बा और घर बार सब बह गया। उन्हें कुछ समझ में नहीं आया तो उन्हों ने आत्म हत्याएं कर लीं। हर रात खौफ़ में और दिन उम्मीद में में गुज़र रहें हैं। उन्हें लगता है कि उन कि मदद को इन्सान आयेंगे।
हर रात उन्हें वो सारे द्रश्य याद आते हैं कि हम ने अपनी नेता के लिए क्या नहीं किया। उन के लिए किसी अच्छे या बुरे में फ़र्क किये बग़ैर काम करते रहे। उन्हों ने वादा किया था कि वो हमें बे सहारा नहीं छोड़ेंगें। हमारे गाँव में आने वाली हर राजनैतिक पार्टी ने और उस के उम्मीदवार के साथ उस के समर्थकों ने हमारी हर संभव मदद कि बात कही थी। अँधेरी काली रात के सन्नाटे में उन्हें वो दिन भी याद आते हैं जब धर्म और समुदाय कि रक्षा के नाम पर इन्हीं नेताओं के इशारे पर एक दुसरे पर घातक हमले भी किये थे। खूब खून बहाया था। लेकिन यह क्या जिस के पिता पुत्र या सम्बन्धी और रिश्तेदार का खून बहाया था आज वही हमारे साथ है। हम एक दुसरे का साथ दे रहे हैं। जीने का सहारा दे रहें। और जिन के लिए यह सब खून खराबा किया था उन को तो हमारी और हमारे बच्चों कि चीखें ही सुनाई नहीं दे रही हैं। यही सब सोंच कर रात कटती है और सुबह फ़िर किसी का जिस्म बेजान मिलता है। और फिर एक साथ एक दूसरे की ढारस बंधाते हैं। अब तो आँखों के आंसू भी सूख गए हैं।
रह रह कर यह ख़याल भी बेचैन करता है कि नव दुर्गा पूजा, क्रष्ण जन्माष्टमी और गणेश चतुर्थी में हम ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। खूब भक्ति प्रदर्शन किया। इस के लिए धर्म-अधर्म की सीमाओं को तोड़ा। पंडित और धर्म गुरुओं की आव भगत की। उनकी सेवा की। लेकिन यह क्या उन्हें भी हमारी कोई फ़िक्र नहीं। उनकी वो सारी उदारता वाली बातें खोखली हो गईं। जलसे और उर्स में करोड़ों खर्च किये। पीरों, आलिमों, मुक़र्रिरों और नात ख्वानों को पात्र से ज़्यादा बल्कि औक़ात से ज़्यादा नज़राना पेश किया। उनकी तकरीरों ने हमेशा एक दूसरे की मदद की बात की लेकिन अफ़सोस आज इस मुश्किल घड़ी में वो भी काम ना आए। आज कोई भी धर्म गुरु हमारी इस दयनीय स्थिति में हमें देखने और हमारी सहायता के लिए निकलने को तैयार नहीं। तो क्या उनकी सहायता और उदारता वाली बातें झूटी हैं। या वो सिर्फ हमारे लिए ही थीं?
बिहार कि सरकार को जनता का इतना ख़याल था कि तेजस्वी यादव और लालू यादव के भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं कर पाए इस लिए एक साफ़ सुथरी और भ्रष्टाचार एवं किसी भी तरह के अधर्म से मुक्त पार्टी के साथ सरकार बना ली। लेकिन अब क्या हुआ? क्या इस सैलाब में डूबने वाले के प्रति उनकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है? अब उन का राज धर्म कहाँ गया? जनता के प्रति अपनी राजनीती और सत्ता को समर्पित करने वाली मर्यादा किस नकारता में विलीन हो गई? सभी खामोश हैं। हाँ यह सच है कि यह एक कुदरती आपदा है लेकिन क्या राजनीती के साथ मानवता का भी सर्वनाश हो गया है?
UP के भी बीस जिले इस बाढ़ कि चपेट में है। लेकिन यह सरकार गाय कि सुरक्षा से निकली तो मदरसे कि देश भक्ति में व्यस्त हो गई। एक सरकार कब्रस्तान और शमसान घाट में उलझी है तो दूसरी सड़कों पर ईद कि नमाज़ और थानों में जन्माष्टमी पर गहरी नज़र रख कर मामले को सुलझा रही है।गोरखपुर के मासूम बच्चों कि मौत हो या या बाढ़ कि गोद में समाने वाले लोगों कि चीखें हों, साहेब के कानों तक यह आवाजें उन्हें डिस्टर्ब कर रही हैं।
एक हमारे देश का मुखिया विश्व के किसी भी कोने में कोई छोटा से छोटा हादसा हो जाए तो न्यूज़ चैनल से पहले उनके ट्वीट से पता चल जाता है कि क्या हुआ है। लेकिन यहाँ इस भीषण आपदा की दयनीय स्थिति में नेट पैक ख़त्म हो गया और माइक काम नहीं कर रहा है। लाल किले से भी कोई संतुष्टि नहीं मिल पाई। गुजरात में GST के विरुध विशाल धरना प्रदर्शन के बाद जब वहाँ के कुछ इलाके बाढ़ से प्रभावित हो गये तो उस के लिए एक खास चार्ट प्लान तैयार किया गया था। लेकिन ना तो यहाँ कोई चार्ट है ना प्लान और ना ही कोई स्पष्ट इरादा है।
अभी सीमांचल की हालत यह है कि जो लोग बाढ़ से बच भी गए हैं अब वहाँ हुई जानवरों और इंसानों की मौतों की वजह से बदबू और सडन पैदा हो गई है उस कि वजह से लोग बुरी तरह से बीमार हो रहे हैं।
अभी भी बिहार एक एक इलाके में गायों कि रक्षा के लिए चार लो लोगों को पीट पीट कर लहू लुहान कर दिया गया। अरे इस बाढ़ में भी हज़ारों माताओं का निधन हो गया है। उन के अंतिम संस्कार कि तैयारी करों उन्हें वहाँ से निकालो। जो बची हैं उनकी सुरक्षा के प्रबल प्रबंध करो।
इन के साथ ही तमाम समाजी और धार्मिक संगठनों ने भी कुछ ना करने का निर्णय ले लिया है। जो यह साफ़ दर्शाता है कि कोई कोई भी सामाजिक और धार्मिक संगठन बग़ैर राजनितिक रिमोट के काम नहीं करता है। एक से एक बड़ी और छोटी तंजीमें जो धर्म बचाने में एड़ी चोटी का ज़ोर लगाती हैं, कहीं लम्बी छुट्टी पर चली गई हैं। ना कोई बयान है और ना ही किसी तरह के आर्थिक सहयोग की कोई ख़बर है। अगर यह लोग ही नहीं बचेंगे तो किस का धर्म और किस का मसलक बचाने के लिए धोके बाज़ी का व्यवसाय करेंगे?
अभी कुछ दिनों से दस बारह साल पुराना संगठन आल इंडिया उलमा व मशाईख़ बोर्ड के संस्थापक एवं अध्यक्ष के बयान देखने और सुनने को मिले हैं। मदद कि अपील भी की है। दुआवों का एहतमाम भी किया है। लेकिन यह समय उन के साथ खड़े होने, उन तक पहुँचने और उन्हें आर्थिक सहयोग पहुँचाने का है।
आज इंसानों के लिए इंसानियत की आवाज़ है। जो भी, जहाँ भी और जिस हाल में भी है, अपने तौर पर उन की मदद करे। वरना एक दूसरे को क्या मुंह दिखाओगे। धर्म, ज़ात, मसलक और राजनीती में मतभेद की लड़ाई के लिए बड़ा समय पड़ा है। लेकिन इन बाढ़ पीड़ितों के लिए क्षण क्षण की देरी उन्हें मौत के करीब कर रही है।
दवा, राशन और दूसरी ज़रूरी चीजों को पहुँचाने का हर संभव प्रयास किया जाये। जो अभी भी बच गए हैं उन्हें बचा लिया जाये। वर्ना याद रखें इतिहास कभी भी किसी भी लम्हे को भूलता और भुलाता नहीं है।
अगर अभी भी उन कि मदद के लिए आगे नहीं आ सकते तो फिर उतार दीजिये ये दस्तारें, जुब्बे, पगड़िया और माले। बंद कीजिये मानव सेवा का ढोंग। छोड़ दीजिये धर्म कि राजनीति। कर लीजिए अपने आप को इंसानियत से, धर्म से और जाती एवं बिरादरी से अलग। मुक्त कीजिये खुद को और सभी अपनी झूटी समाज कि ठेकेदारी से। छोड़ दीजिये उन को उन के हाल पर। जिस ने जान दी है वही ले रहा है। आज इस मुसीबत में हम हैं कल हम सब होंगे।

Abdul Moid Azhari (Amethi) Contact: 9582859385, Email: abdulmoid07@gmail.com

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