HomePress ReleaseStatements

तीन तलाक और समान नागरिक संहिता का मामला अनावश्यक : सरकार पहले धारा 341 से धार्मिक कैद हटाए, उलमा व मशाईख बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना सैयद मोहम्मद अशरफ की मांग

नई दिल्ली 18 अक्टूबर [प्रेस विज्ञप्ति] ऑल इंडिया उलमा व मशाईख बोर्ड ने ला कमीशन के प्रश्न पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सवाल उठाया है कि क्या तीन

नई दिल्ली 18 अक्टूबर [प्रेस विज्ञप्ति]

12821546_925815780870659_5973975684250959662_nsyed-mohd-ashraf

ऑल इंडिया उलमा व मशाईख बोर्ड ने ला कमीशन के प्रश्न पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सवाल उठाया है कि क्या तीन तलाक रद्द करने और समान नागरिक संहिता से देश के विकास की गति में वृद्धि होगी और अगर मुसलमानों को समान अधिकार देने का इरादा है तो संविधान की धारा 341 से धार्मिक कैद हटाने से परहेज क्यों?

सुन्नी सूफी मुसलमानों के प्रतिनिधि संगठन ऑल इंडिया उलमा व मशाईख बोर्ड के अध्यक्ष और संस्थापक हजरत मौलाना सैयद मोहम्मद अशरफ किछौछ्वी ने आज यहां संवाददाताओं से बात करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 341 में धार्मिक कैद लगाकर सरकार ने मुस्लिम समुदाय के पिछड़े वर्गों को उन सुविधाओं से वंचित कर दिया जो अन्य देशवासियों के उन वर्गों को प्राप्त हैं और अब एक अनावश्यक मामला उठाकर ख्वामख्वाह बेचैनी पैदा करने की कोशिश की जा रही है। जस्टिस  राजेंद्र सच्चर के नेतृत्व में बनाई गई एक समिति ने अपनी सिफारिश में यह बात खुलकर कही है कि मुसलमानों की स्थिति दलितों से भी बदतर हो गई है और इस सिफारिश के मद्देनजर सरकार से यह उम्मीद की जा सकती है कि वह मुसलमानों की सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति में सुधार के उपाय करेगी लेकिन इसके बजाय तीन तलाक और समान नागरिक संहिता का मामला पूरी शिद्दत के साथ चर्चा में ला खड़ा किया गया और इस बहस में सार्वजनिक मीडिया में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने के लिए जिन मुस्लिम महिलाओं को लाया जा रहा है उनमें बहुमत सल्फ़ी तथा गैर मोक़ल्लेदीन की है।

 

मुसलमानों के बीच एकता और सहमति पर एक अंतराष्ट्रीय सम्मेलन में बोर्ड के दो बड़े पदाधिकारियों सैयद तनवीर हाशमी और सैयद सलमान चिश्ती के साथ मास्को रवाना होने से पहले कल रात बोर्ड मुख्यालय में संवाददाताओं से हजरत मौलाना सैयद मोहम्मद अशरफ किछौछ्वी ने कहा कि देश में पहले से ही एक कानून चल रहा है। आपराधिक और दीवानी दोनों समान कानून सारे नागरिकों पर लागु हैं। सिर्फ शादी, तलाक और उत्तराधिकार के नियमों में ही तमाम धर्मों के पर्सनल लाज़ पर अमल हो रहा है। शादी में भी स्पेशल मैरिज एक्ट लागू और सक्रिय है। शादी, तलाक और विरासत के शरीयत कानून में हस्तक्षेप से देश के विकास या उसकी खुशहाली में क्या फर्क पड़ेगा नहीं मालूम। इसलिए बोर्ड यह समझता है कि इसकी जरूरत नहीं इसलिए बोर्ड बहुत जल्द भारत भर के  मुफ़्तीयों का एक बड़ा सम्मेलन आयोजित करके इस सवाल पर उनकी लिखित राय तलब करके और सभी पहलुओं पर विचार के एक निष्कर्ष पर पहुंचेगा और यही निष्कर्ष बोर्ड का अंतिम स्टैंड होगा।

एक सवाल के जवाब में हज़रत मौलाना सैयद मोहम्मद अशरफ किछौछ्वी ने कहा कि जो मुस्लिम महिलायें तीन तलाक के उन्मूलन और समान नागरिक संहिता लागु करने की  मांग कर रही हैं उनका संबंध अहले हदीस से है। वह चारों इमामों में से किसी के मसलक (पंथ) का अनुसरण नहीं करतीं। चारों इमामों ने तीन तलाक के मामले की अनुमति दी है, ग़ैर मोक़ल्लिद इससे सहमत नहीं। सवाल यह है कि अहले हदीस को यह अधिकार कहाँ से प्राप्त हो गया कि उससे जुड़ी महिलाएं सभी भारतीय मुस्लिम महिलाओं की प्रतिनिधि बनकर खड़ी हों। संविधान ने भारत में हर धर्म के मानने वाले को अपने धर्म पर चलने की स्वतंत्रता दी  है।

हज़रत मौलाना सैयद मोहम्मद अशरफ किछौछ्वी ने एक और सवाल के जवाब में कहा कि तलाक किसी अप्रिय रिश्ते से भलाई के साथ निकल आने की स्थिति है। इसका दुरुपयोग रोकने के लिए जागरूकता लाना चाहिए। ऑल इंडिया उलमा व मशाईख बोर्ड देश भर के उलेमा, मशाइख, इमाम एवं अन्य ज़िम्मेदारों के द्वारा निकाह, तलाक एवं खुला के मामलों से मुसलमानों को अधिक से अधिक आगाह करने के लिए आन्दोलन चलाएगा।

उन्होंने आगे कहा कि कानून इसलिए बनाये जाते हैं कि लोग कानून के अनुसार अपने आप को ढालें न कि लोगों की तबीयत के अनुसार कानून बदला जाए। तीन तलाक को खत्म करने की नीयत ठीक नहीं है क्योंकि अगर कोई व्यक्ति गुस्से में किसी की हत्या कर दे तो क्या सरकार संविधान की धारा 302 को बदलने की कोशिश करेगी। इस का सीधा जवाब नहीं है, क्योंकि कानून तो हर हाल में रहेगा। कानून के खिलाफ कदाचार या इसका दुरुपयोग रोकने के लिए जागरूकता लाने की जरूरत है और इस पर काम होना चाहिए।

COMMENTS

WORDPRESS: 0
DISQUS: 0