6 दिसंबर , गांधी नगर, गुजरात (प्रेस विज्ञप्ति) यह एक सच्चाई है कि पूरी दुनिया आज आतंकवाद का शिकार दिखायी दे रहा है उस आतंकवादियों को मज़हब से जोड़कर
6 दिसंबर , गांधी नगर, गुजरात (प्रेस विज्ञप्ति)
यह एक सच्चाई है कि पूरी दुनिया आज आतंकवाद का शिकार दिखायी दे रहा है उस आतंकवादियों को मज़हब से जोड़कर देखा जाना चिंताजनक है क्योंकि धर्म अपनी विशेषता से सभी चीजों को पवित्र व शांतिपूर्ण बना देता है। उक्त विचार आज यहां टाउन हॉल, गांधी नगर गुजरात में ऑल इंडिया उलेमा व मशाईख बोर्ड (गुजरात) के बैनर तले एक महत्वपूर्ण बैठक में बोर्ड के संस्थापक अध्यक्ष सैयद मोहम्मद अशरफ किछौछवी व्यक्त ने किया।
इंटरनेशनल सूफी सम्मेलन की तैयारी के संबंध में होने वाली इस बैठक को सम्बोधित करते हुए मौलाना सैयद मोहम्मद अशरफ किछौछवी ने कहा कि यह बड़ी नाइंसाफी की बात है कि इस्लाम धर्म को इस्लाम की पवित्र शिक्षाओं की रोशनी में देखने के बजाय कुछ तथाकथित मुसलमानों के कार्यों से जोड़कर देखा जा रहा जबकि आईएस और बोकोहराम जैसे आतंकवादी संगठनों की अमानवीय गतिविधियों की अनुमति इस्लाम धर्म में न पहले थी और न आज है बल्कि इस्लाम की नज़र में यह एक विद्रोही विचारधारा है और यह विचारधारा नई नहीं है बल्कि यह एक ही विचारधारा के लोग हैं जिस विचारधारा के लोगों को पैगंबरे इस्लाम (स.अ.व.) के जमाने में मुनाफिक कहा जाता था, मौलाए कायनात के दौर में यही लोग खारजी कहलाते थे, इमाम आली मक़ाम के दौर में यह विचारधारा यज़ीदयत के नाम से मशहूर थी और मौजूदा दौर में यही विचारधारा वहाबियत के नाम से मशहूर है। मौलाना किछौछवी ने बताया कि ऑल इंडिया उलेमा व मशाईख बोर्ड पिछले एक दशक से इस विचारधारा को उजागर करने और सूफी परंपराओं को आम करने की कोशिश में लगा है और इस मिशन को नगर-नगर और देश के अधिकांश राज्यों में पहुंचाने के बाद अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस विचारधारका का पर्दाफाश करने के लिए मार्च 2016 में दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय सूफी सम्मेलन आयोजित करने जा रहा है जिसमे पूरी दुनिया का मुसलमान इस विचारधारा के खिलाफ एकजुट होकर एक मजबूत रणनीति तय करेगा।
बैठक को सम्बोधित करते हुए मौलाना आलमगीर अशरफ (अध्यक्ष महाराष्ट्र AIUMB) ने कहा कि इस्लाम पैगंबर मोहम्मद की शिक्षा का नाम है अगर उनकी शिक्षाओं पर कोई अमल नहीं करता तो मज़हब को कसूरवार नहीं ठहराया जा सकता। आतंकवाद के खिलाफ कोई रणनीति तय न करके उसे इस्लाम या किसी अन्य धर्म से जोड़ना अपनी विफलता और अयोग्यता परपरदा डालने के बराबर है। मोलाना ने कहा कि जब इस्लाम सिर्फ मुसलमानों की नहीं बल्कि पूरी मानवता की रक्षा की बात करता है तो जिन तथाकथित मुसलमानों के हाथ में बंदूक दिखायी दे रहा है वह इस्लाम पर अमल करने वाले कैसे हो सकते हैं?
उन्होंने कहा कि सूफी परंपरा हमारी कीमती धरोहर है। आज हमारे समाज से यही धरोहर समाप्त होती जा रही है। यह आतंकवादी विचारधारा इसलिए पैदा होती जा रही है क्योंकि हमारा समाज सूफी परम्पराओं और उनकी शिक्षाओं से दूर होता जा रहा है। जब तक हम उनकी शिक्षाओं शांति प्यार भाईचारे व बंधुत्व का पालन करते रहे हम एक साथ शांति के साथ जीवन गुजार कर देश को विकास के राजमार्गों पर चलते रहे। जैसे-जैसे सूफी परंपरा हमसे विदा होती गई आतंकवाद, उग्रवाद और सांप्रदायिकता का जहर हमारे समाज में जीवन और पीढ़ियों को नष्ट करने लगा।
सूफी एम के चिश्ती ने कहा कि यदि किसी के आचरण के आधार पर ही इस्लाम का जायज़ा लेना है तो इस्लाम के फैलाने वाले सूफ़ी विद्वानों के आचरण को देखना चाहिए जिन्होंने आने वाले से उसका मज़हब या जात नहीं पूछी बल्कि उसकी जरूरत पूछी और बिना भेदभाव के मनुष्यों के साथ मुहब्बत का नमूना पेश किया और पूरा जीवन निःस्वार्थ होकर मानवता की सेवा करते रहे। शांति और सहिश्रुता के बजाय नफरत, आतंकवाद और फसाद को फरोग देना इस्लामी शिक्षाओं के खिलाफ है।
मुफ्ती मुतिउर्रहमान ने पैगंबर मोहम्मद की एक हदीस का हवाला देते हुए कहा कि मुसलमान वो है जिसके ज़ुबान, हाथ से अन्य लोग सुरक्षित रहें और एक निर्दोष का कत्ल पूरी इंसानियत की हत्या है। मुफ़्ती साहब ने कहा कि जिसकी ज़ुबान और हाथ से उसके धर्म वाले ही सुरक्षित नहीं हों वह कभी अपने धर्म का मैंने वाला नहीं हो सकता, ऐसे लोग अपने धर्म के समर्थक नहीं बल्कि विद्रोही होते हैं।
बैठक को कर्नल मुख्तियार सिंह, मुफ्ती मोईनुद्दीन, मौलाना दाउद कौसर सैयद मआज़ अशरफ, बशीर निज़ामी, डाक्टर शहज़ाद काजी ने भी संबोधित किया।
बैठक में उलेमा, बुद्धिजीवी और काफी संख्या में लोग मौजूद रहे और बैठक का समापन सलात व सलाम और दुआ पर हुआ।
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